1. फसल उत्पादन और प्रबंध
फसल – जब एक ही प्रकार के पौधे किस चीज थान पर बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं, तो उसे फसल कहते हैं।
उदाहरण:- चावल, गेहूं
फसलें मुख्यतः दो प्रकार की होती है।
- खरीफ फसल – वे फसलें जिन्हें वर्षा ऋतु में बोया जाता है, खरीफ फसलें कहलाती हैं। भारत में वर्षा ऋतु सामान्यतः जून से सितंबर तक होती है। उदाहरण:- धान, सोयाबीन, मक्का, कपास, मूंगफली इत्यादि ।
- रबी फसल - शीत ऋतु में उगाई जाने वाली फसलों को रबी फसलें कहते हैं। उदाहरण:- गेहूं, मटर, चना, सरसों इत्यादि ।
- मिट्टी तैयार करना- इसमें किसान मिट्टी की जुताई करता है उसमें बहुत सारी कृषि औजारों का इस्तेमाल करता है पहले के समय में हल का इस्तेमाल आमतौर पर किया जाता था इसमें एक लोहे की सॉफ्ट होती थी। आज के समय में मिट्टी कल्टीवेटर से तैयार की जाती है जो ट्रैक्टर से जुड़ा होता है।
- बुआई - इसमें किसान अच्छे बीजों का चयन करता है। बुवाई में भी किसान हलिया कल्टीवेटर का इस्तेमाल करता है इसकी मदद से बीजों को मिट्टी के अंदर मिला दिया जाता है। इसको आज के समय में सीड ड्रिल के नाम से जाना जाता है।
- खाद और उर्वरक मिलाना- ऐसे पदार्थ ने मिट्टी में पोषक स्तर बढ़ाने के लिए मिलाया जाता है उन्हें खाद और उर्वरक कहते हैं। खाद आमतौर पर हमें गोबर, मानव अपशिष्ट और पौधों के अवशेष के विघटन से प्राप्त होता है जबकि उर्वरक फैक्ट्रियों में तैयार किए जाते हैं। उर्वरक से मिट्टी को ह्यूमस नहीं मिलता जबकि खाद से मिट्टी को प्रचुर मात्रा में हयूमस मिलता है।
- सिंचाई - किसान पौधों को पानी देने के लिए बहुत सारे स्त्रोतों का इस्तेमाल करता है। इसे हम सिंचाई के नाम से जानते हैं। सिंचाई के मुख्य स्त्रोत कुएं, तालाब, ट्यूबवेल इत्यादि हैं। सिंचाई की दो आधुनिक विधियां छिड़काव तंत्र और ड्रिप तंत्र है। नीचे दी गई फोटो में आप दोनों तंत्रों को देख सकते हो।
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| छिड़काऊ तंत्र |
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| ड्रिप तंत्र |
- खरपतवार से सुरक्षा - खेत में कुछ फसल के अलावा अवांछित पौधे उग आते हैं जिन्हें हम खरपतवार कहते हैं। खरपतवार हटाने की प्रक्रिया को निराई कहते हैं। हम कुछ रसायनों का प्रयोग भी खरपतवार को नियंत्रित करने में करते हैं जिन्हें खरपतवारनाशी के नाम से जाना जाता है।
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| किटनाशक का उपयोग |
- कटाई- जब फसल तैयार हो जाती है तो उसको काटा जाता है जिसे हम कटाई कहते हैं। फसल काटने के लिए हम हार्वेस्टर का इस्तेमाल करते हैं। काटी गई फसल से भूसे और दानों को अलग कर लिया जाता है जिसे श्रेशिंग के नाम से जाना जाता है। आधुनिक समय में काटने के लिए कंबाइन का इस्तेमाल किया जाता है।
- भंडारण - फसल की प्राप्ति होने के बाद उसे सुरक्षित रख दिया जाता है जिसे हम भंडारण कहते हैं। भंडारण में हमें चूहे और कीटों से फसल की सुरक्षा करनी पड़ती है ताकि उसको खाने के लिए बचाया जा सके।
2. सूक्ष्मजीव : मित्र एवं शत्रु
सूक्ष्मजीव - वे जीव जिन्हें हम अपनी आंखों से देख नहीं सकते उन्हें हम सूक्ष्म जीव कहते हैं। सूक्ष्म जीव आकार में बहुत ही छोटे होते हैं जिनको हमारी साधारण आंखों से नहीं देखा जा सकता।
सूक्ष्म जीवों को चार वर्गों में बांटा गया है।
- जीवाणु
- कवक
- शैवाल
- प्रोटोजोआ
सूक्ष्म जीव मित्र के रूप में-
- सूक्ष्मजीव दूध से दही बनाने में काम आते हैं।
- सूक्ष्म जीव मरे हुए जानवरों को खत्म करने में काम आते हैं।
- सूक्ष्म जीवों की मदद से बहुत सारी दवाइयां बनाई जाती हैं।
- सूक्ष्म जीवों की मदद से चीनी से शराब बनाई जाती है।
- सूक्ष्म जीव मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि करते हैं।
- यह नीले हरे शैवाल तथा जीवाणु की मदद से होता है।
एंटीबायोटिक - वह औषधि जो बीमारी पैदा करने वाले सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देती है या उनकी वृद्धि को रोक देती है उसको हम एंटीबायोटिक कहते हैं। एंटीबायोटिक भी सूक्ष्मजीवों के ही बने होते हैं।
वैक्सीन (टीका) - वैक्सीन सूक्ष्म जीवों की बनी होती है। वैक्सीन के टीके का प्रयोग आमतौर पर चेचक, हैजा तथा हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों को रोकने के लिए किया जाता है। हमारा शरीर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता रखता है। जब कोई भी सूक्ष्म जीव हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो हमारा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता उसको बढ़ने से रोकती है। वैक्सिंग टीके के अंदर मृत अवस्था में सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं जिससे शरीर उन्हें पहले ही समझ लेता है और दोबारा आने वाले सूक्ष्म जीवों को जल्दी मार देता है जिससे बीमारी खत्म हो जाती है।
सूक्ष्म जीव शत्रु के रूप में –
- सूक्ष्म जीव हमारे शरीर में बहुत सारी बीमारियां पैदा कर देते हैं।
- सूक्ष्म जीव हमारे खाने को खराब कर देते हैं।
- पौधों में बीमारियां उत्पन्न कर देते हैं।
- सूक्ष्म जीव चिकन पॉक्स बीमारी वायरस की वजह से होती है। कोरोनावायरस बीमारी वायरस की वजह से होती है।
- हेपेटाइटिस बी बीमारी वायरस की वजह से होती है।
- पोलियो बीमारी वायरस की वजह से होती है।
- हैजा बीमारी जीवाणु की वजह से होती है।
- टाइफाइड बीमारी जीवाणु की वजह से होती हैं।
- मलेरिया बीमारी प्रोटोजोआ की वजह से होती है।
- नमक और खाद्य तेल का उपयोग सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को रोकने के लिए किया जाता है हम इसे अचार बनाने में इस्तेमाल करते हैं।
- नमक भोजन को लंबे समय तक सूक्ष्म जीवों के प्रभाव से सुरक्षित रख सकता है।
- जैम, जेली तथा स्क्वैश का परिरक्षण चीनी द्वारा किया जाता है। चीनी के प्रयोग से खाद्य पदार्थ की नमी में कमी आ जाती है और सूक्ष्म जीवो की वृद्धि इस वजह से कम हो जाती हैं।
- हम खाने को गरम और ठंडा करके भी सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को रोक देते हैं।
- हम खाने को सुरक्षित रखने के लिए वायुरोधी शील वाले पैक्टो का प्रयोग करते हैं।
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| नाइट्रोजन चक्र |
3. कोयला और पेट्रोलियम
प्राकृतिक संसाधन- वे संसाधन जो हमें प्रकृति से मिलते हैं उन्हें हम प्राकृतिक संसाधन कहते हैं। प्राकृतिक संसाधन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।
अक्षय प्राकृतिक संसाधन- यह प्राकृतिक संसाधन असीमित मात्रा में है और कभी खत्म नहीं होंगे। उदाहरण:- सूर्य का प्रकाश, वायु।
समाप्त होने वाले प्राकृतिक संसाधन- यह प्राकृतिक संसाधन निरंतर प्रयोग से खत्म हो जाएंगे। उदाहरण:- कोयला, पेट्रोलियम, खनिज लवण, प्राकृतिक गैस।
कोयला-
कोयला पत्थर जैसा कठोर और काले रंग का होता है। इसका प्रयोग खाना बनाने में प्रयोग होने वाले ईंधन के रूप में किया जाता है। शुरुआती दौर में इससे रेल के इंजन चलाए जाते थे। कोयले का उपयोग विद्युत बनाने हेतु भी किया जाता है।
कोयले की कहानी-
आज से लाखों करोड़ों साल पहले पृथ्वी पर एक उल्का गिरने से सभी जीव जंतु और पेड़ पौधे खत्म हो गए। समय बीतने के साथ वह नीचे दबते चले गए। अधिक दबाव होने की वजह से सारे पेड़ पौधे कोयले में परिवर्तित हो गए। पेड़ पौधों से कोयले में परिवर्तन होने की प्रक्रिया को कार्बनीकरण कहते हैं।
कोयले के उत्पाद-
कोयले को गर्म पर उसमें से बहुत सारी चीजें बाहर निकलती है।
कोक- यह काले रंग का एक कठोर पदार्थ होता है। यह कार्बन का लगभग शुद्ध रूप है। को का प्रयोग इस्पात बनाने हेतु किया जाता है।
कोलतार- यह एक गाढा द्रव्य होता है। इसका प्रयोग सड़क निर्माण हेतु किया जाता है। कोयला गैस- कोयले के प्रक्रमण में कोक बनाते समय कोयला गैस हमें मिलती है। इसका प्रयोग इंधन के रूप में किया जाता है।
पेट्रोलियम - आधुनिक समय में इंधन के रूप में वाहनों में जो पदार्थ प्रयोग किया जाता है। वह हमें पेट्रोलियम से प्राप्त होता है। पेट्रोलियम एक गाढा द्रव्य होता है। पेट्रोलियम निकालते समय इसमें से हमें प्राकृतिक गैस मिलती है। जो जमीन के अंदर पेट्रोलियम से ऊपर पाई जाती हैं।
पेट्रोलियम की कहानी-
आज से लगभग 300 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर एक उल्का गिरने से पृथ्वी की सारी वनस्पति और जीव-जंतु मारे गए। जो जानवर मरे, वह समय बीतने के साथ जमीन के नीचे दबते चले गए। उच्च दाब और उच्च ताप की वजह से वे जानवर पेट्रोलियम में बदल गए।
पेट्रोलियम का परिष्करण-
पेट्रोलियम एक गहरे रंग का तेलीय द्रव है। इसे हमें बहुत सारी चीजें मिलती है। जैसे- डीजल, पेट्रोल, मोम, पेट्रोलियम गैस, स्नेहक इत्यादि। पेट्रोलियम से सभी चीजों को अलग करने की प्रक्रिया को परिष्करण कहते हैं।
प्राकृतिक गैस- प्राकृतिक गैस एक महत्वपूर्ण जीवाश्म ईंधन है। इसका प्रयोग वाहनों में किया जाता है। प्राकृतिक गैस को उच्च दाब पर दबाया जाता है। इसके बाद इसको वाहनों में प्रयोग में लाया जाता है। जिसे हम CNG संपीड़ित प्राकृतिक गैस के नाम से जानते हैं।
दहन और ज्वाला.
दहन- जब किसी पदार्थ में से प्रकाश और ऊष्मा उत्पन्न होती है। उसे हम दहन कहते हैं। दहन होने के लिए उस पदार्थ को ऑक्सीजन की उपस्थिति की आवश्यकता होती है। ऑक्सीजन न मिलने पर दहन बंद हो जाता है।
ज्वाला- जब किसी पदार्थ का दहन होता है उस समय उसमें से कुछ लपटे बाहर निकल कर आती हैं जिसे हम ज्वाला कहते हैं।
हम आग पर नियंत्रण कैसे पाते हैं।
हम जानते हैं कि आग लगने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है। जब कहीं पर आग लग जाती हैं तो हम उस पदार्थ से ऑक्सीजन की सप्लाई को बंद कर देते हैं और आग पर नियंत्रण पा लेते हैं। इसके लिए हम कार्बन डाइऑक्साइड गैस का प्रयोग करते हैं। क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड गैस ऑक्सीजन से भारी है इसी वजह से कार्बन डाइऑक्साइड पदार्थ के चारों तरफ एक परत बना लेती है जिसकी वजह से ऑक्सीजन की सप्लाई बंद हो जाती है और पदार्थ जलना बंद हो जाता है।
ज्वलन ताप - वह न्यूनतम ताप पर कोई पदार्थ विशेष जलने लगता है, उसका ज्वलन ताप कहलाता है।
ज्वलनशील पदार्थ - जिन पदार्थों का ज्वलन ताप काफी कम होता है और वह ज्वाला के साथ, सरलता पूर्वक आग पकड़ लेते हैं, वे ज्वलनशील पदार्थ कहलाते हैं।
दहन के प्रकार-
तीव्र दहन- वह पदार्थ जो बहुत ही जल्दी आग पकड़ लेता है। उस पदार्थ के दहन को हम तीव्र दहन कहते हैं। जैसे- LPG गैस
स्वतः दहन - ऐसा दहन जिसमें पदार्थ बिना किसी उस्मा के जलना शुरू कर देता है। उसे हम स्वतः दहन कहते हैं।
विस्फोट- इस दहन में बड़ी मात्रा में ध्वनि, उष्मा और प्रकाश पैदा होता है। अभिक्रिया से उत्पन्न गैस बड़ी मात्रा में निकलती है। इसे हम विस्फोट कहते हैं। जैसे दिवाली के समय पटाखों का जलाना
मोमबत्ती की ज्वाला का चित्र
पोधे और जन्तुओ का संरक्षण
वनोन्मूलन- वनों के कट जाने को वनोन्मूलन कहते हैं। वनोन्मूलन के बहुत सारे कारण होते हैं।
कृषि के लिए भूमि प्राप्त करना
फर्नीचर बनाने अथवा लकड़ी का इंधन के रूप में प्रयोग करना
करो और कारखानों के निर्माण में
वनोन्मूलन के परिणाम-
वनोन्मूलन होने की वजह से उन जंगलों में रहने वाले जानवर बेघर हो जाते हैं। बहुत सारी प्रजातियां खत्म हो जाती है। पृथ्वी में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने लगती हैं जिसकी वजह से सूखा जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पृथ्वी का पूरा संतुलन बिगड़ जाता है। पृथ्वी की मिट्टी से नमी खत्म हो जाती है और उर्वर भूमि मरुस्थल में तब्दील हो जाती है। इसे मरुस्थलीकरण कहते हैं।
जैव विविधता- एक सीमित क्षेत्र के अंदर रहने वाले जानवरों और पेड़ पौधों की अलग-अलग प्रजातियों को हम जैव विविधता कहते हैं।
अभयारण्य- वह क्षेत्र जहां जंतु और उनके आवास किसी भी प्रकार के विक्षोभ से सुरक्षित रहते हैं।
राष्ट्रीय उद्यान- वन्य जंतुओं के लिए आरक्षित ऐसे क्षेत्र जहां वह स्वतंत्र रूप से आवास और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं।
जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र- वन्य जीवन, पौधे एवं जंतु संसाधनों और उस क्षेत्र के आदिवासियों के परंपरागत ढंग से जीवनयापन हेतु विशाल संरक्षित क्षेत्र।
चिड़ियाघर - यहां प्राणियों का संरक्षण किया जाता है लेकिन वह कृत्रिम आवास में रहते हैं।
संकटापन्न स्पीशीज - ऐसी स्पीशीज जिनकी संख्या एक निर्धारित स्तर से कम हो जाती हैं। इन प्रजातियों के समाप्त होने का खतरा बढ़ जाता है। उसे हम संकटापन्न स्पीशीज कहते हैं। उदाहरण- बाघ, बारहसिंघा हिरण, जंगली आम।
विलुप्त स्पीशीज - ऐसी प्रजातियां जो अब हमें देखने को नहीं मिलती अर्थाथ जो प्रजातियां अब समाप्त हो चुकी है। उसे हम विलुप्त स्पीशीज कहते हैं। उदाहरण- डायनासोर
वनस्पतिजात - किसी विशेष क्षेत्र में पाए जाने वाले पेड़ पौधों को हम वनस्पतिजात कहते हैं।
प्राणिजात - किसी विशेष क्षेत्र में पाए जाने वाले जीव जंतुओं को हम प्राणिजात कहते हैं।
रेड डाटा पुस्तक- इस पुस्तक के अंदर संकटापन स्पीशीज का रिकॉर्ड रखा जाता है। इसे एक अंतरराष्ट्रीय संघ के द्वारा संभाला जाता है। हर देश की अपनी-अपनी रेड डाटा पुस्तक होती है।
प्रवास – जलवायु परिवर्तन के कारण जंतु अपनी जगह छोड़कर दूसरी जगह चले जाते हैं जिसे हम प्रवास कहते हैं।
पुनर्वनरोपण – पेड़ पौधों को दोबारा लगाना और खाली पड़ी जमीन को दोबारा जंगलों में परिवर्तित करना पुनर्वनरोपण कहलाता है।
जंतुओं में जनन,
जनन- हर जंतु अपने जैसी संतान पैदा करता है। इसे ही जनन कहते हैं। जनन मुख्यतः दो प्रकार क्या होता है।
लैंगिक जनन – इसमें जनन करने वाले पौधों अथवा जंतुओं में नर और मादा जननांग होते हैं।
अलैंगिक जनन- इसमें जनन करने वाले पौधे अथवा जंतु अपने शरीर को दो हिस्सों में तोड़कर अपनी संतान पैदा करते हैं।
लैंगिक जनन-
लैंगिक जनन में नर और मादा जननांग होते हैं। । नर और मादा जननांग आपस में मिलकर युग्मनज बनाते हैं और वह बाद में विकसित होकर एक जीव बनता है।
नर जनन अंग- नर जनन अंगों में एक जोड़ा वृषण, दो शुक्राणु नलिका एवं एक सीसन होता है। वृषण नर युग्मक पैदा करते हैं इन्हें शुक्राणु कहते हैं। शुक्राणु का एक सिर, मध्य भाग और एक पूंछ होती है। । हर शुक्राणु में एक कोशिका होती है
मादा जनन अंग- मादा जनन अंगों में 1 जोड़ी अंडाशय, अंडवाहिनी और एक गर्भाशय होता है। अंडाशय मादा युग्मक बनाते हैं।, जिसे अंडाणु कहते हैं।
निषेचन- जब अंडाणु शुक्राणु से मिलता है तो इनमें से एक शुक्राणु अंडाणु के साथ संलयित हो जाता है। शुक्राणु और अंडाणु का यह संलयन निषेचन कहलाता है। निषेचन के परिणामस्वरूप युग्मनज का निर्माण होता है। निषेचन मुख्यतः दो प्रकार का होता है।
आंतरिक निषेचन- वह निषेचन जो मादा की शरीर में होता है, अंतरिक निषेचन कहलाता है। उदाहरण:- मनुष्य, कुत्ते, गाय आदि में आंतरिक निषेचन होता है।
बाह्य निषेचन- वह निषेचन जिसमें अंडाणु और शुक्राणु का मिलन मादा के शरीर से बाहर होता है, बहन चेतन कहलाता है। उदाहरण:- मछली
भ्रूण का परिवर्धन-
निषेचन के फलस्वरुप युग्मनज बनता है जो धीरे-धीरे बड़ा होता है। जिसे हम भ्रूण कहते हैं। हम प्रकार के जंतु में भ्रूण का समय कम या ज्यादा होता है। उदाहरण के लिए मनुष्य में भ्रूण 9 महीने का होता है। भ्रूण की वह अवस्था जिसमें शरीर के विभिन्न अंगों की पहचान हो सके, गर्भ कहलाता है।
जरायुज और अंडप्रजक जंतु -
- वे जंतु जो सीधे ही बच्चे को जन्म देते हैं, जरायुज जंतु कहलाते हैं।
-वे जंतु जो अंडे देते हैं, अंडप्रजक जंतु कहलाते हैं।
मेढ़क का जीवन चक्र
मेंढक का टैडपोल से व्यस्क हो जाना कायांतरण कहलाता है।
अलैंगिक जनन-
हाइड्रा में मुकुलन-
हाइड्रा में उभरे हुए भाग को मुकुल कहते हैं। हाइड्रा की संतान मुकुल से पैदा होती हैं।
अमीबा में द्विखंडन-
अमीबा में द्विखंडन होता है। अमीबा अपने शरीर को दो हिस्सों में तोड़कर अपनी संतान पैदा करता है।
किशोरावस्था की ओर,
किशोरावस्था- जीवन काल की वह अवधि जब शरीर अपने अंगों को विकसित करता है। वह अवस्था किशोरावस्था कहलाती है। यह अवधि लगभग 11 वर्ष की आयु से प्रारंभ होती है और 18 या 19 वर्ष की आयु तक रहती है। लड़कियों में यह अवस्था लड़कों की तुलना में 1 या 2 वर्ष पहले ही प्रारंभ हो जाती है। किशोरावस्था
यौवनारंभ में होने वाले परिवर्तन-
लंबाई में वृद्धि होनी शुरू हो जाती है।
शरीर की आकृति में बदलाव आना शुरू हो जाता है।
स्वर में परिवर्तन हो जाता है। लड़कों के अंदर ऐडम्स एप्पल उभरकर बाहर आ जाता है और लड़कियों की आवाज और तेज हो जाती हैं।
जनन अंगों का विकास हो जाता है। लड़कियों में अंडाशय के आकार में वृद्धि हो जाती हैं।
लड़कों को दाढ़ी मूछ आने लग जाती हैं।
यौवनारंभ के साथ ही वृषण टेस्टोस्टेरोन या पुरुष हार्मोन का प्रारंभ हो जाता है। लड़कियों में अंडाशय एस्ट्रोजन या स्त्री हार्मोन बनना शुरू हो जाता है
स्त्रियों में जनन अवस्था का प्रारंभ 10 से 12 वर्ष की आयु से हो जाता है और यह सामान्यतः 45 से 50 वर्ष की आयु तक चलता रहता है।
ऋतुस्त्राव – अंडाशय में जब अंडाणु बनते हैं तब वह अंडाणु माता के शरीर में 28 से 30 दिन तक रहता है। अगर वह निषेचन नहीं करता तो वह फूट जाता है और शरीर से बाहर निकलता है। इससे स्त्रियों में रक्त स्त्राव होता है। जिसे रजोधर्म या ऋतुस्त्राव कहते हैं।
संतान का लिंग निर्धारण-
लिंग निर्धारण में गुणसूत्रों की अहम भूमिका होती है। पुरुष के पास XY गुणसूत्र होते हैं जबकि माता के पास XX गुणसूत्र होते हैं। जब माता गुणसूत्र पुरुष गुणसूत्रों से मिलते हैं यानी कि जब शुक्राणु अंडाणु से मिलते हैं तो निषेचन होता है। इस निषेचन के दौरान अगर पुरुष का x गुणसूत्र माता के गुणसूत्रों से मिलता है तो वह लड़की होगी। जबकि अगर पुरुष का Y गुणसूत्र माता के X गुणसूत्र से मिलता है। तो उस समय संतान लड़का होगा। नीचे की फोटो को देखकर आप इसे और भी बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
हार्मोन-
हमारे शरीर में बहुत सारी क्रियाएं चलती हैं। उन्हीं में से बहुत सारी ग्रंथियां अलग-अलग हार्मोन उत्पन्न करती हैं। जो हमारे शरीर में अलग-अलग कार्य करते हैं। चलिए जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण हार्मोनो के बारे में।
पीयूष ग्रंथि- यह ग्रंथियां हमारे शरीर की वृद्धि को नियंत्रित करती हैं। पीयूष ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन को वृद्धि हार्मोन कहते हैं। यह ग्रंथि हमारे मस्तिष्क में पाई जाती हैं। इस ग्रंथि के सही से काम ना करने पर लंबाई या तो ज्यादा बढ़ जाती है या फिर नहीं बढ़ती।
थायराइड ग्रंथि- यह ग्रंथि हमारे गले में पाई जाती हैं। यह हमारी आवाज को संतुलित करने का काम करती है। इस ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन को थायरोक्सिन कहते हैं। इस ग्रंथि के काम न करने पर गायटर नामक रोग हो जाता है। जिससे हमारा गला फूल जाता है।
एड्रिनल ग्रंथि- यह ग्रंथि हमारे पेट के हिस्से में पाई जाती है। इस ग्रंथि से एड्रिनेलिन नामक हार्मोन बनता है। जो हमारे शरीर के क्रोध, चिंता और उत्तेजना को संतुलित करता है।
अग्न्याशय- यह हार्मोन भी हमारे पेट के हिस्से में पाया जाता है। इससे इंसुलिन नामक हार्मोन उत्पन्न होता है। जो हमारे शरीर में खाने को पचाने में सहायक होता है। इसकी वजह से डायबिटीज नामक बीमारी हो जाती है।
अंडाशय – यह स्त्री संबंधी अंग है। इससे एस्ट्रोजन नामक हार्मोन उत्पन्न होता है।
वृषण – यह पुरुष संबंधी अंग है। इससे टेस्टोस्टेरोन हार्मोन उत्पन्न होता है।
कीट और मेंढक के अंदर कायांतरण होता है। कायांतरण का मतलब है। लारवा से व्यस्त बनने का परिवर्तन। इसके दौरान कीट कीट हार्मोन उत्पन्न करते हैं।
किशोर की पोषण आवश्यकताएं-
हमारा शरीर बहुत सारी कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। हर कोशिका अलग-अलग कार्य करती है। किशोरावस्था के दौरान शरीर की तेजी से वृद्धि होती है। इस वृद्धि में शरीर को एक अच्छे आहार की जरूरत होती है। जिसे हम संतुलित आहार कहते हैं। संतुलित आहार में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन और खनिज का पर्याप्त मात्रा में समावेश जरूरी है। दूध अपने आप में एक संतुलित आहार है। इस दौरान हमें एक अच्छे आहार के साथ-साथ शारीरिक व्यायाम की भी जरूरत पड़ती है। ताकि शरीर के सभी अंग सही से काम करते रहें।
बल तथा दाब,
बल- किसी भी प्रकार के अपकर्षण या अभिकर्षण को बल कहते हैं।
बल के नियम-
किसी वस्तु पर एक ही दिशा में लगाए गए सभी बल आपस में जुड़ कर एक शक्तिशाली बल का निर्माण करते हैं।
विपरीत दिशा में लगाया गया बल उस वस्तु पर लग रहे बल को कम कर देता है। इसमें कुल बल दोनों बलों के अंतर के बराबर होगा।
बल्कि प्रबलता इसके परिणाम से मापी जाती है।
बल लगने पर किसी भी वस्तु की आकृति में बदलाव आ जाता है।
बल लगने पर किसी भी वस्तु की गति में परिवर्तन आता है।
बल के प्रकार-
बल मुख्यतः दो प्रकार का होता है।
संपर्क बल
असंपर्क बल
संपर्क बल दो वस्तुओं के परस्पर आपस में मिलने से लगता है। यह बल मुख्यतः दो प्रकार से हम विभाजित कर सकते हैं।
पेशीय बल – किसी जंतु के द्वारा लगाए जाने वाला बल पेशीय बल कहलाता है। इस बल को लगाने के लिए मांसपेशियों की जरूरत पड़ती है। उदाहरण के लिए बैल एक गाड़ी को खींच रहा है।
घर्षण बल – यह बल दो वस्तुओं के परस्पर चलने से लगता है। हर किसी वस्तु पर यह बल लग रहा होता है। यह बल गति की विपरीत दिशा में लगता है।
असंपर्क बल में बिना किसी दूसरी वस्तु को संपर्क में लाए उसमें बदलाव किया जा सकता है। असंपर्क बल के कुछ प्रकार नीचे दिए गए हैं।
चुंबकीय बल – चुंबक के द्वारा लगाया जाने वाला बल चुंबकीय बल कहलाता है। यह बल चुंबक के ध्रुवों की वजह से लगता है। अगर चुंबक की एक जैसे ध्रुव आमने सामने आते हैं तो वे एक-दूसरे को प्रकाशित करते हैं। अगर चुंबक के विपरीत ध्रुव एक दूसरे के सामने आते हैं तो वे एक दूसरे को आकर्षित करते हैं।
स्थिरवैधुत बल – जब एक आवेशित वस्तु दूसरी आवेशित वस्तु पर बल लगाती है तो वह बल स्थिरवैद्युत बल है। उदाहरण के लिए जब हम अपने सूखे बालों से पैन को खींचते हैं तो वह पेन का टुकड़ा आवेशित हो जाता है और वह छोटे-छोटे कागज के टुकड़ों को अपनी तरफ आकर्षित करने लगता है।
गुरुत्वाकर्षण बल – यह अब तक का सबसे बड़ा बल है क्योंकि इसी की वजह से हमारा जीवन संभव है। यह बल पृथ्वी को सूर्य के चारों तरफ घुमाता है। इसी बल की वजह से चीजें पृथ्वी के ऊपर गिरती हैं।
दाब- किसी क्षेत्र पर लगाए जाने वाले बल को दाब कहते हैं।
दाब = बल/ क्षेत्रफल
इसका मतलब यह हुआ कि अगर हम किसी वस्तु का क्षेत्रफल कम कर देते हैं तो उस पर लगने वाला दाब ज्यादा हो जाएगा। उदाहरण के लिए आप एक कील के नुकीले सिरे को दीवार में हथौड़े से ठोक देते हैं। अगर आप कील का क्षेत्रफल ज्यादा कर दे तो उस कील को ठोकने में आपको ज्यादा बल लगाना पड़ेगा। द्रव्य भी अपना बल लगाते हैं। गैसों का भी अपना अलग बल होता है जिसे हम वायुमंडलीय दाब कहते हैं। आपने महसूस किया होगा जब हम पहाड़ों पर घूमने जाते हैं तो हमें हमारा शरीर हल्का महसूस होता है। इसका कारण यह है कि पहाड़ों पर वायुमंडलीय दबाव कम होता है इस वजह से हमें हल्का महसूस होता है।
घर्षण,
घर्षण – जब में दो वस्तुएं परस्पर संपर्क में आती है। उस समय कोई वस्तु जिस दिशा में गति कर रही है। घर्षण बल उसकी उल्टी दिशा में कार्य करता है। उदाहरण के लिए हम मान कर चलते हैं कि हम उत्तर दिशा में जा रहे हैं। तो घर्षण बल दक्षिण दिशा की ओर कार्य करेगा।
घर्षण को प्रभावित करने वाले कारक-
किसी वस्तु का वजन बढ़ने पर घर्षण बढ़ जाता है।
किसी वस्तु की गति बढ़ने पर घर्षण बढ़ जाता है।
किसी वस्तु के आकार पर भी घर्षण बदल जाता है।
पृष्ठ की चिकनाहट से भी घर्षण बदल जाता है।
हम किसी भी वस्तु के घर्षण को कम या ज्यादा कर सकते हैं
किसी वस्तु पर स्नेहक लगाने से घर्षण कम हो जाता है।
किसी वस्तु को खुरदुरा करने से घर्षण बढ़ जाता है।
पहिए घर्षण को कम कर देते हैं।
किसी वस्तु का आकार घर्षण को कम या ज्यादा कर सकता है।
हवा और द्रव्य के अंदर भी घर्षण होता है।
लोटनिक घर्षण – जब कोई वस्तु दूसरी वस्तु पर लोटन करती है यानी कि जब वह वस्तु दूसरी वस्तु पर गोल घूम कर जाती हैं उसे लोटनिक घर्षण कहते हैं। उदाहरण के लिए पहिए अंदर लोटनिक घर्षण होता है।
स्थैतिक घर्षण- जब कोई वस्तु एक जगह पर खड़ी रहती है तो उस समय उस पर घर्षण लग रहा होता है। जिसे स्थैतिक घर्षण कहते हैं।
सर्पी घर्षण- जब कोई वस्तु दूसरी वस्तु पर सरक रही होती है। उस घर्षण को सर्पी घर्षण कहते हैं। उदाहरण के लिए हम किसी सामान से भरी पेटी को खींच रहे हैं। उस समय उस पर लगने वाला घर्षण सर्पी घर्षण है।
ध्वनि,
ध्वनि- किसी वस्तु के कंपन को ध्वनि कहते हैं। ध्वनि को संचारण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। बिना किसी माध्यम के ध्वनि एक जगह से दूसरी जगह नहीं जा सकती है। हवा के अंदर ध्वनि की गति 342 मीटर/सेकंड होती है।
माध्यम तीन प्रकार के होते हैं।
ठोस – इसमें ध्वनि सबसे तेजी से गति करती है।
द्रव्य – इसमें ध्वनि मध्यम गति से चलती है।
गैस – इसमें ध्वनि सबसे धीमी गति से चलती हैं।
मनुष्य द्वारा उत्पन्न ध्वनि
मानवों में ध्वनि कंठ द्वारा उत्पन्न होती है। मानव वाकयंत्र दो वाक् तंतु की तानीत झिल्ली होती है।
हम ध्वनि कैसे सुनते हैं-
हम ध्वनि अपने कानों से सुनते हैं। हमारा कान के बाहरी हिस्से में एक तानित झिल्ली होती है जिसे हम कान का पर्दा कहते हैं। जब वह पर्दा हिलता है उस समय जो कंपन पैदा होता है वह कंपन कान के आंतरिक भाग तक जाता है। जो तंत्रिका तंत्र के द्वारा मस्तिष्क तक भेज दिया जाता है। मस्तिष्क से समझता है और परिणाम स्वरूप हमें सुनाई देता है।
आवृत्ति- प्रति सेकेंड होने वाले कंपनियों या दोलनो की संख्या आवृत्ति कहलाती है। आवृत्ति को हर्ट्ज़ में मापा जाता है। आवृत्ति के बढ़ने पर ध्वनि की प्रबलता बढ़ जाती हैं। ध्वनि की प्रबलता को डेसिबेल में मापा जाता है। 80db से अधिक प्रबल ध्वनि शोर कष्टदायक होता है।
हम मनुष्य 20 हर्ट्ज़ से 20000 हर्ट्ज़ की ध्वनि सुन सकते हैं। इससे कम हम नहीं सुन सकते और इससे ज्यादा भी हम नहीं सुन सकते।
शोर- वह ध्वनि जिसे हम सुनना पसंद नहीं करते शोर कहलाती है। उदाहरण के लिए फैक्ट्री से निकलने वाली ध्वनि शोर होती है। कभी-कभी संगीत भी शोर बन जाता है अगर हमें वह पसंद नहीं है और हम उसे सुनना नहीं चाहते। ज्यादा देर तक कोई भी आवाज सुनने से हमारे सिर में दर्द होने लगता है। इसे हम शोर प्रदूषण कहते हैं।
संगीत- वह ध्वनि जिसे हम सुनना पसंद करते हैं संगीत कहलाती हैं।
विद्युत धारा के रासायनिक प्रभाव
विद्युत धारा- किसी वस्तु के आवेश के प्रभाव को विद्युत कहते हैं। विद्युत चालन करने के लिए हमें किसी माध्यम की आवश्यकता होती है। माध्यम मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।
सुचालक- वे पदार्थ जो विद्युत को अपने अंदर प्रवाहित होने देते हैं। सुचालक कहलाते हैं। उदाहरण:- लोहा, तांबा, सोना इत्यादि
कुचालक- वे पदार्थ जो विद्युत धारा को अपने अंदर से प्रवाहित नहीं होने देते हैं। कुचालक कहलाते है। उदाहरण- हवा, प्लास्टिक ।
विस्थापन अभिक्रिया- इसमें एक शक्तिशाली धातु कम शक्तिशाली धातु को बदल देती हैं। इस अभिक्रिया को विस्थापन अभिक्रिया कहते हैं। उदाहरण
कॉपर सल्फेट (CuSO4) + जिंक (Zn) → जिंक सल्फेट (ZnSO4) + कॉपर (Cu)
विद्युतलेपन- विद्युत द्वारा किसी पदार्थ पर किसी वांछित धातु की परत निक्षेपित करने की प्रक्रिया विद्युत लेपन कहलाती है। उदाहरण:- लोहे पर जिंक की परत चढ़ाना। विद्युतलेपन की मदद से नकली आभूषण बनाए जाते हैं।
कुछ प्राकृतिक परिघटनाएं,
तड़ित- जब एक वस्तु दूसरी वस्तु से रगड़ खाती है उस समय वस्तुएं आवेशित हो जाती है। यही आवेश जब अधिक हो जाता है कि विद्युत भी इसके प्रवाह को नहीं रोक पाती। उसमें जो चिंगारियां हमें आसमान में दिखाई देती है उसे तड़ित कहते हैं।
आवेश मुख्यतः दो प्रकार का होता है:-
ऋणावेश
धनावेश
हम आवेश को विद्युतदर्शी की मदद से देखते हैं। विद्युतदर्शी की मदद से यह पता भी लगाया जा सकता है कि किसी वस्तु के ऊपर किस तरह का आवेश है।
तड़ित की कहानी
जब एक ऋणावेशित बादल किसी धनावेशित बादल से टकराता है। उस समय उनके बीच आकर्षण होता है। और इसी टकराहट की वजह से चिंगारियां उत्पन्न होने लगती है जो हमें आसमान में कड़कती हुई दिखाई देती है। जिसे हम तड़ित कहते हैं।
तड़ित से सुरक्षा-
तड़ित की आवाज सुनते ही आपको एक सुरक्षित जगह ढूंढ लेनी चाहिए।
तड़ित के समय पेड़ों से दूर रहें।
तडित के समय अपने घरों में रहे।
यदि आप किसी खुले मैदान में हैं और कोई भी श्रेण नहीं है तो जमीन पर बैठ जाएं। जमीन पर लेटे नहीं।
यदि आप किसी वाहन पर है तो वाहन से ना उतरे। अगर वाहन पर छत नहीं है तो एक सुरक्षित जगह ढूंढ ले।
तड़ित चालक- जब आसमान से बिजली नीचे गिरती है तो वह बड़ी-बड़ी इमारतों पर गिर जाती है। उससे बचने के लिए हम एक धातु की छड़ अपनी छत पर लगाते हैं जो जमीन से जुड़ी होती हैं। जब भी कोई आवेशित बादल और छड़ के आस पास से गुजरता है तो वह छड़ उसका सारा आवेश सोख लेती है। इससे भवन सुरक्षित रहता है।
भूकंप- जब धरती की गहराई में कुछ हलचल होती है। उस समय जमीन हिलने लगती है जिसे हम भूकंप कहते हैं। भूकंप मापने के लिए हम रिक्टर पैमाना या सिस्मोग्राफ का इस्तेमाल करते हैं। रिक्टर पैमाने पर 7 या इससे अधिक का भूकंप बहुत तबाही फैला सकता है।
• यदि आप घर में हैं तो किसी मेज के नीचे छिप जाएं।
• ऐसी ऊंची और भारी वस्तुओं से दूर रहे तो आपके ऊपर गिर सकती हैं।
अगर आप बिस्तर पर हैं तो उठे नहीं, अपने सिर को तकिए से ढके।
• अगर आप घर से बाहर हैं तो वृक्षों, भवनों तथा बिजली के खंभों से दूर रहें।
• अगर आप किसी वाहन में हैं तो वहां को खुली जगह पर ले जाए। वाहन को रोके नहीं।
प्रकाश Class 8 Science Chapter 13 Notes in Hindi Medium PDF
प्रकाश- प्रकाश कोई वस्तु नहीं है। हमें प्रकाश सूर्य से प्राप्त होता है। प्रकाश की वजह से ही हम वस्तुएं देख पाते हैं। जब कोई भी प्रकाश की किरण किसी वस्तु पर टकराती है उस समय वह किरण उससे परावर्तित हो जाती है और हमारी आंखों तक पहुंचती है। इन्हीं परावर्तित किरणों की वजह से हमें कोई वस्तु दिखाई देती है। उदाहरण के लिए आप एक अंधेरे कमरे में किसी भी वस्तु को नहीं देख सकते हैं। जहां पर प्रकाश की एक भी किरण ना हो।
परावर्तन के नियम-
किसी भी वस्तु से टकराकर वापस आने वाले प्रकाश को परावर्तन कहते हैं। परावर्तन के 2 नियम है।
1. आपतन कोण हमेशा परावर्तन कोण के बराबर होता है।
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2. आपतित किरण, परावर्तित किरण और अभिलंब सब एक ही तल में होते हैं।
परावर्तन दो तरह का होता है।
नियमित परावर्तन- इस तरह के परावर्तन के अंदर प्रकाश की किरण एक समतल जगह से टकराती । और किरण टकराकर समानांतर जाती हैं।
विसरित परावर्तन- इस तरह के परावर्तन के अंदर प्रकाश की किरण एक उबड़ खाबड़ जगह से टकराती
है और अलग-अलग दिशाओं में फैल जाती है।
जब किसी वस्तु की छवि हमें दिखाई पड़ती है। उसे हम प्रतिबिंब कहते हैं।
दर्पण के अंदर नियमित परावर्तन होता है। दर्पण में हमारा प्रतिबिंब आभासी, दर्पण के पीछे तथा हमारे आकार का बनता है। दर्पण के अंदर हमारा दाया भाग बाया और बाया भाग दाया बन जाता है।
बहु प्रतिबिंब- जब एक वस्तु दो या दो से अधिक बार परावर्तित होती है तो वह अपने बहुत सारे प्रतिबिंब बना लेती है। बहुमूर्तिदर्शी में भी बहु प्रतिबिंब की मदद से नए-नए डिजाइन बनाए जाते हैं। बहुमूर्तिदर्शी में तीन दर्पण त्रिकोण की आकार में लगा दिए जाते हैं। जिससे जब प्रकाश की किरण उसके अंदर आती है तो वह बहुत अधिक बार परावर्तित होती है और एक नया आकार हमें देती है। बहुमूर्तिदर्शी को कैलिडोस्कोप भी कहते हैं।
सूर्य का प्रकाश बहुत सारे रंगों का मिश्रण होता है। बहुत सारे रंग मिलकर सूर्य के प्रकाश को सफेद रंग प्रदान करते हैं। अगर हम सूर्य के किरण प्रिज्म में से निकालते हैं तो यह किरण सात अलग-अलग रंगों में टूट जाती है। जिसे हम विबग्योर कहते हैं। बारिश के तुरंत पश्चात दिखने वाले इंद्रधनुष के सात रंग सूर्य के प्रकाश के अलग अलग रंग होने की वजह से बनते हैं।
हमारी आंख का चित्र
लेंस- लेंस हमारी आंख पर पड़ने वाली किरणों को रेटिना तक पहुंचाने का कार्य करता है। रेटिना- यह हमें किसी वस्तु के आकार व आकृति को देखने में मदद करता है। जब लेंस प्रकाश की किरणों को केंद्रित करके रेटिना तक पहुंचाता है तो रेटिना उसे तंत्रिका तंत्र के द्वारा हमारे मस्तिष्क तक भेजता है।
पक्ष्माभा पेशी – यह हमारे लेंस को संतुलित रखने का कार्य करता है। पुतली- यह हमारी आंख में आने वाली रोशनी को नियंत्रित करता है। कम प्रकाश में हमारी पुतली बड़ी हो जाती है और अधिक प्रकाश में छोटी हो जाती है। ताकि आंख को कोई हानि ना पहुंचे।
कॉर्निया- यह हमारे आंख का बाहरी सफेद हिस्सा होता है। यह हमारी आंख को बाहरी वातावरण से सुरक्षित रखने का कार्य करता है। हमारी आंख का सफेद हिस्सा कार्निया है।
कॉर्निया
परितारिका
पुतली
नेत्रों की देखभाल
कभी भी तेज प्रकाश की तरफ ना देखें।
अपनी आंखों को ताजे पानी से धोएं।
कचरा जाने पर आंखों को अपने हाथों से ना रगड़े। अगर आपको चश्मे लगे हैं तो उचित चश्मा का प्रयोग करें।
पढ़ने वाली सामग्री को 25 सेंटीमीटर दूर से देखे।
ब्रेल पण्ति – इस पद्धति के द्वारा अंधे लोगों को पढ़ना सिखाया जाता है।

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