8. पादप में जनन
अध्याय – समीक्षा
- अपने वंश अथवा प्रजाति को बनाए रखने के लिए सभी पादप और जंतुओं के लिए जनन आवश्यक है।
- पादपों में जनन दो प्रकार से होता है
- अलैंगिक जनन
- लैंगिक जनन
- अलैंगिक जनन में नए पादप बीजों अथवा बीजाणुओं के उपयोग के बिना ही उगाए जाते हैं। इसकी मुख्य विधियाँ-कायिक प्रवर्धन, मुकुलन, खंडन और बीजाणु निर्माण हैं।
- लैंगिक जनन में नए पादप बीजों से प्राप्त होते हैं। इसमें नर एवं मादा युग्मकों का युग्मन होता है।
- कायिक प्रवर्धन में पादप के मूल, तने, पत्ती अथवा कली (मुकुल) जैसे किसी कायिक अंग द्वारा नया पादप प्राप्त किया जाता है।
- पुष्प पादप के जनन अंग होते हैं। ये एकलिंगी और द्विलिंगी प्रकार के होते हैं। एकलिंगी पुष्प में पुंकेसर और स्त्रीकेसर में से केवल एक ही उपस्थित होता है, परन्तु द्विलिंगी पुष्प में दोनों उपस्थित होते हैं।
- परागकणों का परागकोश से पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरण ‘परागण’ कहलाता है। परागण दो तरह से होता है-स्व-परागण और पर-परागण। स्व-परागण में परागकण परागकोश से उसी पुष्पा के वर्तिकान पर स्थानान्तरित होते हैं। पर-परागण में परागकण एक पुष्प के परागकोश से उसी प्रकार के दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरित होते हैं।
- नर तथा मादा युग्मकों के युग्मन द्वारा बनी कोशिका ‘युग्मनज’ कहलाती है। युग्मनज बनाने के लिए नर और मादा युग्मकों के युग्मन का प्रक्रम ‘निषेचन’ कहलाता है।
- निषेचन के बाद अंडाशय फल में विकसित होता है और बीजाण्ड से बीज विकसित होते हैं।
- बीजों का प्रकीर्णन पवन, जल अथवा जंतुओं के द्वारा विभिन्न स्थानों पर होता है।
