2. जंतुओं में पोषण
अध्याय -समीक्षा
- मानव सहित सभी जीवों को वृद्धि करने, शरीर को स्वस्थ एवं गतिशील बनाए रखने के लिए खादय पदार्थों की आवश्यकता होती है।
- पाचक रस जटिल पदार्थों को उनके सरल रूप में बदल देते हैं। आहार नाल एवं संबद्ध ग्रंथियाँ मिलकर पाचन तंत्र का निर्माण करते हैं।
- जंतु पोषण में पोषण आवश्यकताएँ, भोजन अंतर्ग्रहण की विधियाँ एवं शरीर में इनका उपयोग सम्मिलित है।
- आहार नाल तथा स्रावी ग्रंथियाँ संयुक्त रूप से मानव के पाचन तंत्र का निर्माण करती हैं। इसमें
- मुख-गुहिका
- ग्रसिका
- आमाशय
- क्षुद्रांत्र
- बृहदांत्र जो मलाशय में समाप्त होती है तथा
- गुदा सम्मिलित हैं। पाचक रस स्रावित करने वाली मुख्य ग्रंथियाँ हैं:
(ii) यकृत एवं
(iii) अग्न्याशय
आमाशय की भिति एवं क्षुद्रांत्र की भित्ति भी पाचक रस स्रावित करती है ।
- विभिन्न जीवों में भोजन ग्रहण करने की विधियाँ भी भिन्न हैं।
- पाचन एक जटिल प्रक्रम है, जिसमें
- अंतर्ग्रहण
- पाचन
- अवशोषण
- स्वांगीकरण एवं
- निष्कासन शामिल हैं।
- भोजन का अंतर्ग्रहण मुख द्वारा होता है। आहार को शरीर के अंदर लेने की क्रिया अंतर्ग्रहण कहलाती है।
- आमाशय का आंतरिक अस्तर (सतह) को श्लेष्मा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल तथा रस स्रावित करता है।
- मंड जैसे कार्बोहाइड्रेट का पाचन मुख में ही प्रारंभ हो जाता है। प्रोटीन का पाचन आमाशय में प्रारंभ होता है। यकृत द्वारा स्रावित पित्त, अग्न्याशय से अग्न्याशयिक स्राव एवं क्षुद्रांत्र भित्ति द्वारा स्रावित पाचक रस की क्रिया से भोजन के सभी घटकों का पाचन क्षुद्रांत्र में पूरा हो जाता है।
- श्लेष्मा आमाशय के आंतरिक स्तर की सुरक्षा प्रदान करता है।
- जल एवं कुछ लवण बृहदांत्र में अवशोषित होते हैं। अवशोषित पदार्थ शरीर के विभिन्न भागों को स्थानांतरित कर दिए जाते हैं।
- बिना पचे अपशिष्ट जिनका अवशोषण नहीं होता, मल के रूप में गुदा द्वारा शरीर के बाहर निकाल दिए जाते हैं।
- गाय, भैंस एवं हिरण जैसे घास खाने वाले जंतु रोमंथी (रूमिनैन्ट) कहलाते हैं। वे पत्तियों का अंतग्रहण तीव्रता से करके उन्हें निगल लेते हैं तथा रुमेन में भंडारित कर लेते हैं। कुछ अंतराल के बाद भोजन पुनः मुख में आ जाता है और पशु धीरे-धीरे जुगाली कर उसे चबाते हैं।
- अमीबा में भोजन का अंतर्ग्रहण पादाभ की सहायता से होता है तथा इसका पाचन खाद्य धानी में होता है।
- यकृत गहरे लाल-भूरे रंग की ग्रंथि है, जो उदर के ऊपरी भाग में दाहिनी (दक्षिण) ओर अवस्थित होती है। यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है।
- यकृत पित रस स्रावित करता है जो पिताशय में संग्रहित होता है। यह वसा के पाचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- अग्नाशय एक हल्के पीले रंग की ग्रंथि है जो पाचन के लिए बहुत से एंजाइम स्रावित करता है जैसे- पेप्सिन, ट्रिप्सिन, पैनक्रियाटिन आदि ।

.jpeg)